समावेशी शिक्षा

समावेशी शिक्षा शारीरिक और मानसिक रूप से क्षतिग्रस्त बच्चों को सामान्य पालको के सामान्य कक्षा में शिक्षा ग्रहण करने पर जोर देती है। इस बात की आवश्यकता है कि वह 3Rs (Reading, Writing and Mathematics) के साथ किसी भी क्षेत्र में दूसरे सामान्य बालकों से पीछे न रहे। भाइकेल एफ. जिआन ग्रेको के अनुसार, “समावेशी शिक्षा से अभिप्राय उन मूल्यों, सिद्धान्तों और प्रथाओं के समूह से है जो सभी विद्यार्थियों को, चाहे वे विशिष्ट हैं अथवा नहीं, प्रभावकारी और सार्थक शिक्षा देने पर बल देते हैं।” स्टेनबैक एवं स्टेनबैक का विचार है कि “समावेशी विद्यालय अथवा पर्यावरण से अभिप्राय ऐसे स्थान से है जिसका प्रत्येक व्यक्ति अपने को सदस्य मानता है, जिसको अपना समझा जाता है, जो अपने साथियों और विद्यालय कुटुम्ब के प्रत्येक सदस्य की सहायता करता है और अपनी शिक्षा प्राप्ति सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उनसे सहायता प्राप्त करता है।”

समावेशी शिक्षा की प्रकृति (Nature of Inclusive Education)

प्रकृति
  • समावेशी शिक्षा की प्रकृति निम्नलिखित रूप से दर्शायी गई है-
  • यह शिक्षा सामान्य विद्यालयों में सामान्य बालकों के साथ प्रदान की जाती है।
  • इस शिक्षा के द्वारा असमर्थों को शिक्षा प्राप्त करने का विस्तृत क्षेत्र प्राप्त होता है।
  • इस शिक्षा से बालकों को विद्यालय का सदस्य वातावरण प्राप्त होता है।
  • सामान्य एवं असमर्थ बालकों द्वारा एक- दूसरे को समझने से आपसी सूझ-बूझ का विकास होता है तथा सामान्य बालक असमर्थों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं।

विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की अवधारणा (Concept of Special Need Children)

विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों को अपवादी बच्चे भी कहा जाता है। सामान्यतः विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चे उन बच्चों को कहा जाता है जो अपनी क्षमताओं, योग्यताओं, व्यवहार, व्यक्तित्व आदि से अपनी आयु के अन्य बच्चों से अलग होते हैं। यह भिन्नता इसके उच्चता के कारण भी हो सकती है और निम्नता के कारण भी। अर्थात् इस प्रकार के बच्चों का विकास या तो इतना तीव्र या ज्यादा होता है कि वे अन्य बच्चों से आगे निकल जाते हैं या इतना कम विकास होता है कि वह बच्चे अन्य बच्चों से पिछड़ जाते हैं। इन दोनों ही प्रकार के बच्चों को शिक्षा अलग से प्रदान की जाती है। इन बच्चों के लिये अध्यापकों की नियुक्ति भी अलग से होती है। प्रत्येक बच्चा एक-दूसरे से भिन्न होता है। यह भिन्नता शारीरिक, मानसिक व अन्य प्रकार से हो सकती है। प्रत्येक बच्चे की कार्य करने की क्षमता, रुचि, योग्यता, व्यवहार, व्यक्तित्व किसी दूसरे बच्चे से अलग होती है। कुछ बच्चे कार्य करने में इतने कुशल व तीव्र होते हैं कि वे अन्य बच्चों से आगे निकल जाते हैं कुछ इतने ढीले होते हैं कि वे पिछड़ जाते हैं।

क्रो व क्रो के अनुसार विशेष प्रकार या विशिष्ट शब्द किसी ऐसे गुण या उस गुण को धारण करने वाले व्यक्ति के लिये उस समय प्रयोग में लाया

जाता है, जबकि व्यक्ति उस गुण-विशेष को धारण करते हुए अन्य सामान्य व्यक्तियों से विशिष्ट ध्यान की माँग करे या उसे प्राप्त करे और साथ है इससे उसके व्यवहार की क्रियाएँ तथा अनुक्रियाएँ भी प्रभावित हो।”

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