बुद्धि निर्माण एवं बहुआयामी बुद्धि

बुद्धि

बुद्धि (Intelligence) शब्द का प्रयोग सामान्यतः प्रज्ञा, प्रतिभा, ज्ञान एवं समझ इत्यादि के अर्थों में किया जाता है। यह वह शक्ति है, जो हमें समस्याओं का समाधान करने एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम बनाती है।

बुद्धि के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिकों में मतभेद हैं, फिर भी यह निश्चित तौर पर कहा जाता है कि यह किसी के व्यक्तित्व का मुख्य निर्धारक है, क्योंकि इससे व्यक्ति की योग्यता का पता चलता है। इसे व्यक्ति की जन्मजात शक्ति कहा जाता है, जिसके उचित विकास में उसके परिवेश की भूमिका प्रमुख होती है। मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं में बुद्धि के विकास में भी अन्तर होता है।

बुद्धि के मुख्य तीन पक्ष होते हैं-कार्यात्मक, संरचनात्मक एवं क्रियात्मक। बुद्धि को मुख्यतः तीन श्रेणियों में रखा गया है-सामाजिक बुद्धि, स्थूल बुद्धि एवं अमूर्त बुद्धि।

वंशानुक्रम एवं वातावरण तथा इन दोनों की अन्तः क्रिया बुद्धि को निर्धारित करने वाले कारक हैं।

बुद्धि की परिभाषाएँ

बुद्धि के सन्दर्भ में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा निम्न परिभाषाएँ दी गई है एल.एम. हर्मन ने बुद्धि की परिभाषा (Defnitions of Intelligence) इस प्रकार दी है. “बुद्धि अमूर्त विचारों के सन्दर्भ में सोचने की योग्यता है।

स्टर्न के अनुसार, “बुद्धि व्यक्ति की यह सामान्य योग्यता है, जिसके द्वारा वह सचेत रूप से नवीन आवश्यकताओं के अनुसार चिन्तन करता है। इस तरह, जीवन की नई समस्याओं एवं स्थितियों के अनुसार अपने आपको डालने की सामान्य मानसिक योग्यता ‘बुद्धि’ कहलाती है।”

पिन्टर के अनुसार, “जोवन को अपेक्षाकृत नवीन परिस्थितियों से अपना सामंजस्य करने को व्यक्ति को योग्यता ही बुद्धि है।”

रायबर्न के अनुसार, “बुद्धि वह शक्ति है, जो हमें समस्याओं का समाधान करने और उ‌द्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता देती है।”

वैश्लर के अनुसार, “बुद्धि किसी व्यक्ति के द्वारा उ‌द्देश्यपूर्ण कार्य करने, तार्किक चिन्तन करने तथा वातावरण के ढंग से क्रिया करने को सामूहिक योग्यता है।” बुडवर्थ के अनुसार, “बुद्धि, कार्य करने की एक विधि है।”

बुडरों के अनुसार, “बुद्धि, ज्ञान अर्जन करने की क्षमता है।”

हेनमॉन के अनुसार, “बुद्धि में मुख्य तत्त्व होते हैं ज्ञान की क्षमता एवं निहित ज्ञान।”

थॉर्नडाइक के अनुसार, “सत्य या तथ्य के दृष्टिकोण से उत्तम प्रतिक्रियाओं की शक्ति ही बुद्धि है।”

कॉलविन के अनुसार, “यदि व्यक्ति ने अपने वातावरण से सामंजस्य करना सीख लिया है या सीख सकता है, तो उसमे बुद्धि है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के अनुसार, हम यह कह सकते है कि बुद्धि अमूर्त चिन्तन की योग्यता, अनुभव से लाभ उठाने को योग्यता, अपने वातावरण से सामंजस्य करने की योग्यता, सीखने की योग्यता, समस्या समाधान करने की योग्यता तथा सम्बन्धों को समझने की योग्यता है।

बुद्धि के सिद्धान्त

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरूप से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है, जिनसे बुद्धि के सम्बन्ध में कई प्रकार की महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं, जो निम्न प्रकार हैं

एक-कारक सिद्धान्त

  • एक-कारक सिद्धान्त (One-Factor or Monarchy Theory) का प्रतिपादन बिने (Binet) ने किया और इस सिद्धान्त का समर्थन कर इसको आगे बढ़ाने का श्रेय टर्मन, स्टर्न एनिंग्हास जैसे मनोवैज्ञानिकों को है।
  • इन मनोवैज्ञानिकों का मत है बुद्धि एक अविभाज्य इकाई है।
  • स्पष्ट है कि इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि को एक शक्ति या कारक के रूप में माना गया है।
  • इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बुद्धि वह मानसिक शक्ति है, जो व्यक्ति के समस्त कार्यों का संचालन करती है तथा व्यक्ति के समस्त व्यवहारों को प्रभावित करती है।

मानसिक आयु एवं बुद्धि परीक्षण

बुद्धि-परीक्षण के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व की विशेषताओं का पता लगाया जाता है। पराश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के प्रामाणिक मापन की विधियों की खोज की। इस सन्दर्भ में सर्वप्रथम जर्मन मनोवैज्ञानिक मुण्ट का नाम आता है, जिसने वर्ष 1879 में बुद्धि के मापन के लिए मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला को स्थापना की।

फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने एवं उसके साथी साइमन ने बुद्धि के मापन का आधार बच्चों के निर्णय, स्मृति, तर्क एवं आंकिक जैसे मानसिक कार्यों को माना।

  • उन्होंने इन कायों से सम्बन्धित अनेक प्रश्न तैयार किए और उन्हें अनेक बच्चों पर आजमाया।

इस परीक्षण के अनुसार जो बालक अपनी आयु के अनुरूप निर्धारित सभी प्रश्नों के सही उत्तर देता है वह सामान्य बुद्धि का होता है, जो अपनी आयु से ऊपर की आयु के बच्चों के लिए निर्धारित प्रश्नों के उत्तर भी दे देता है, वह उच्च बुद्धि का होता है।

  • जो बालक अपनी आयु से ऊपर की आयु के बच्चों के लिए निर्धारित सभी प्रश्नों के सही उत्तर देता है वह सर्वोच्च बुद्धि का होता है एवं जो अपनी आयु के बच्चों के लिए निर्धारित प्रश्नों के सही उत्तर नहीं दे पाता वह निम्न बुद्धि का होता है।
  • उपरोक्त मनोवैज्ञानिको के बाद सर्वप्रथम विलियम स्टर्न ने बुद्धि के मापन के लिए बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient) के प्रयोग का सुझाव दिया।

द्वि-कारक सिद्धान्त

  • इस सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन हैं। उनके अनुसार बुद्धि में दो कारक हैं अथवा सभी प्रकार के मानसिक कार्यों में दो प्रकार की मानसिक योग्यताओं की आवश्यकता होती है। प्रथम सामान्य मानसिक योग्यता (General intelligence ‘g’) द्वितीय विशिष्ट मानसिक योग्यता (Specific intelligence ‘s’)
  • प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य मानसिक योग्यता के अतिरिक्त कुछ-न-कुछ विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती है।
  • एक व्यक्ति जितने ही क्षेत्रों अथवा विषयों में कुशल होता है, उसमें उतनी ही विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती हैं।
  • यदि एक व्यक्ति में एक से अधिक विशिष्ट योग्यताएँ हैं, तो इन विशिष्ट योग्यताओं में कोई विशेष सम्बन्ध नहीं पाया जाता है।
  • स्पीयरमैन का यह विचार है कि एक व्यक्ति में सामान्य योग्यता की मात्रा जितनी ही अधिक पाई जाती है, वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होता है।

बहुकारक सिद्धान्त

  • इस सिद्धान्त के मुख्य समर्थक थॉर्नडाइक थे। इस सिद्धान्त के अनुसार, बुद्धि कई तत्त्वों का समूह होती है और प्रत्येक तत्त्व में कोई सूक्ष्म योग्यता निहित होती है। अतः सामान्य बुद्धि नाम की कोई चीज नहीं होती, बल्कि बुद्धि में कई स्वतन्त्र, विशिष्ट योग्यताएँ निहित रहती है, जो विभिन्न कार्यों को सम्पादित करती है।
  • थॉर्नडाइक ने तीन प्रकार की बुद्धि के बारे में बताया। ये बुद्धि हैं- अमूर्त बुद्धि, सामाजिक बुद्धि तथा यान्त्रिक बुद्धि।
  • इसके अतिरिक्त थॉर्नडाइक ने बुद्धि के चार स्वतन्त्र प्रतिमान (aspects) दिए हैं
  • 1. स्तर (Level) स्तर का शाब्दिक अर्थ होता है कि किसी विशेष
  • कठिनाई स्तर का कितना कार्य किसी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है।
  • 2. परास/सीमा (Range) इसका अर्थ है, कार्य को उस विविधता से जो 2 किसी स्तर पर कोई व्यक्ति समस्या का समाधान कर सकता है।
  • 3.क्षेत्र (Area) क्षेत्र का अभिप्राय है, क्रियाओं की उन कुल संख्याओं से
  • है, जिनका हम समाधान कर सकते हैं।
  • 4.गति (Speed) इसका अर्थ कार्य करने की गति है।

बुद्धि के सिद्धान्त

  • सिद्धान्त प्रतिपादक
  • एक-कारक सिद्धान्त बिने, टर्मन, स्टर्न
  • द्वि-कारक सिद्धान्त स्पीयरमैन
  • बहुकारक सिद्धान्त थॉर्नडाइक
  • प्रतिदर्श सिद्धान्त थॉमसन
  • समूहकारक सिद्धान्त थर्सटन
  • पदानुक्रमिक सिद्धान्त (त्रि-आयामी) जे.पी. गिलफोर्ड
  • तरल ठोस बुद्धि सिद्धान्त आर.बी. कैटेल
  • बहुबुद्धि सिद्धान्त हॉवर्ड गार्डनर

प्रतिदर्श सिद्धान्त

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन थॉमसन ने किया था। उसने अपने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन स्पीयरमैन के द्वि-कारक सिद्धान्त के विरोध में किया था।

थॉमसन ने इस बात का तर्क दिया कि व्यक्ति का बौद्धिक व्यवहार अनेक स्वतन्त्र योग्यताओं पर निर्भर करता है, किन्तु इन स्वतन्त्र योग्यताओं का क्षेत्र सीमित होता है।

  • प्रतिदर्श सिद्धान्त (Sample Theory) के अनुसार बुद्धि कई स्वतन्त्र तत्त्वों से बनी होती है। कोई विशिष्ट परीक्षण या विद्यालय सम्बन्धी क्रिया में इनमें से कुछ तत्त्व स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं। यह भी हो सकता है कि दो या अधिक परीक्षाओं में एक ही प्रकार के तत्त्व दिखाई दें तब उनमें एक सामान्य तत्त्व की विद्यमानता मानी जाती है। यह भी सम्भव है कि अन्य परीक्षाओं में विभिन्न तत्त्व दिखाई दें तब उनमें कोई भी तत्त्व सामान्य नहीं होगा और प्रत्येक तत्त्व अपने आप में विशिष्ट होगा।

समूह-तत्त्व सिद्धान्त

स्पीयरमैन के सिद्धान्त के विरूद्ध थर्सटन महोदय ने समूह तत्व सिद्धान्त (Group Element Theory) प्रतिपादित किया।

  • वे तत्त्व जो प्रतिभात्मक योग्यताओं में तो सामान्य नहीं होते, परन्तु कई क्रियाओं में सामान्य होते हैं, उन्हें समूह-तत्त्व की संज्ञा दी गई है।
  • इस सिद्धान्त के समर्थकों में थर्सटन का नाम प्रमुख है। प्रारम्भिक मानसिक योग्यताओं का परीक्षण करते हुए वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे थे कि कुछ मानसिक क्रियाओं में एक प्रमुख तत्त्व सामान्य रूप से विद्यमान होता है, जो उन क्रियाओं के कई ग्रुप होते हैं, उनमें अपना एक प्रमुख तत्त्व होता है।
  • ग्रुप तत्त्व सिद्धान्त की सबसे बड़ी कमी यह है कि यह सामान्य तत्त्व की धारणा का खण्डन करता है। अन्य मनोवैज्ञानिकों ने भी बुद्धि परीक्षण से सम्बन्धित सिद्धान्त दिये हैं जो कि निम्नलिखित हैं।

गिलफोर्ड का सिद्धान्त

जे.पी. गिलफोर्ड और उसके सहयोगियों ने बुद्धि परीक्षण से सम्बन्धित कई परीक्षणों पर कारक विश्लेषण तकनीक का प्रयोग करते हुए मानव बुद्धि के विभिन्न तत्त्वों या कारकों को प्रकाश में लाने वाला प्रतिमान विकसित किया। इस सिद्धान्त को पदानुक्रमिक सिद्धान्त (त्रि-आयामी) भी कहा जाता है।

  1. संज्ञान (Cognition) इसका अर्थ होता है, खोज, दोबारा खोज या पहचान की क्षमता इत्यादि
  2. स्मृति (Memory) इसका अर्थ होता है, जो भी संज्ञान में आया है उसे धारण करना
  3. मूल्यांकन (Evaluation) इस प्रक्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति जो कुछ जानता है वह उसकी स्मृति में रहता है तथा जो कुछ वह मौलिक चिन्तन में निर्मित करता है, उनके परिणामों की अच्छाई, सत्यता, उपयुक्तता के विषय में निर्णय लेता है।
  4. अभिसारी चिन्तन (Convergent Thinking) के अन्तर्गत व्यक्ति समस्या के ऐसे समाधान पर पहुँचता है, जो परम्परा एवं प्रचलन के अनुसार स्वीकृत एवं सही समझा जाता हो।
  5. अपसारी चिन्तन (Divergent Thinking) के अन्तर्गत व्यक्ति विभिन्न दिशाओं, विभिन्न मार्गों से विभिन्नता के साथ समस्या का हल निकालता है तथा व्यक्ति उनके परिणाम की अच्छाई तथा उपयोगिता के सन्दर्भ में निर्णय लेता है। ऑउट ऑफ द बॉक्स चिन्तन इसी के अन्तर्गत आता है।

मानसिक आयु

किसी व्यक्ति का बौद्धिक विकास अपने समान आयु वर्ग की तुलना में कितना हुआ है, इस मापन की विधि को मानसिक आयु (Mental Age) कहते हैं।

उदाहरण यदि कोई 6 वर्ष का बालक 15 वर्ष के व्यक्ति के अनुसार दिमाग रखता है या सोचता है तो 15 वर्ष उस बालक को मानसिक आयु होगी।

वास्तविक आयु या कालानुक्रम आयु

यह किसी भी मनुष्य को वास्तविक आयु होती है अर्थात् वह कितने वर्ष का हो गया है। 10 वर्ष का व्यक्ति जो 160 अंक लिया हुआ है, उसकी मानसिक आयु क्या होगी?

बुद्धि-लब्धि = 160

वास्तविक आयु = 10

बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु × (M.A)/वास्त वास्तविक आयु (Real Age)x 100

160 – M.A x 100 10

MA- 160 x 10 100 = 16 वर्ष

टर्मन ने सर्वप्रथम बुद्धि-लब्यांक ज्ञात करने की विधि बताई। इसके अनुसार बुद्धि-लब्धि बच्चे की मानसिक आयु को उसकी वास्तविक आयु से भाग करके, 100 से गुणा करने पर प्राप्त की जाती है। इसके अनुसार बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient-IQ) का सूत्र है

बुद्धि-लब्धि = मानसिक आयु \कालानुक्रमिक आयु (Chronological Age) ×100

बौद्धिक विवृद्धि और विकास

बौद्धिक विवृद्धि और विकास (Mental Growth and Development) अनेक कारकों पर निर्भर करता है। मस्तिष्क की परिपक्वता बौद्धिक विवृद्धि को सर्वाधिक प्रभावित करती है। जन्म के समय बालक में उसकी बौद्धिक योग्यताएँ अनेक विकास की प्रथमावस्था के निम्नतम स्तर पर होती हैं। बालक की आयु बढ़ने के साथ-साथ उसकी बौद्धिक योग्यताओं में विवृद्धि और विकास होता रहता है। शैशवावस्था से बाल्यावस्था तक यह विकास तीव्र गति से होता है, परन्तु किशोरावस्था के अन्त से और प्रौढ़ावस्था में इस विकास की गति मन्द हो जाती है।

थर्सटन का विचार है कि उसके द्वारा किए गए कारक विश्लेषण अध्ययनों के आधार पर प्राप्त सात प्राथमिक मानसिक योग्यताएँ एकसाथ एकसमान आयु स्तर पर परिपक्व नहीं होती हैं। उसके अनुसार प्रत्यक्षपरक योग्यता बारह वर्ष की अवस्था में अपनी विवृद्धि की पूर्णता की ओर अग्रसर होती है।

इसी प्रकार चौदह वर्ष की अवस्था में तथा तार्किक योग्यता सोलह वर्ष की आयु में स्मृति योग्यता और संख्यात्मक योग्यता परिपक्वावस्था की ओर अग्रसर होती है। बालकों की शाब्दिक योग्यता तथा भाषा बोध आदि योग्यताएँ इस आयु अवस्था के बाद विकसित होती हैं।

वेश्लर का विचार है कि बौद्धिक विवृद्धि कम-से-कम बीस वर्ष की आयु तक होती रहती है। आधुनिक शोधों से यह पता चला है कि साठ वर्ष की आयु तक बुद्धि-लब्धांक में वृद्धि होती रहती है।

शिक्षा के क्षेत्र में बुद्धि परीक्षणों का महत्त्व

शिक्षा के क्षेत्र में बुद्धि परीक्षणों का महत्त्व निम्न प्रकार है

शैक्षणिक मार्गदर्शन

  • विज्ञान के साथ-साथ मनोविज्ञान ने मानवीय समस्याओं के समाधान में असाधारण योगदान दिया है। इसके द्वारा बच्चों के भविष्य निर्धारण को योजनाओं को बनाया जा रहा है। इसी प्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में सही दिशा एवं लक्ष्य को प्राप्त करने में बुद्धि परीक्षाएं समर्थ होती है। शिक्षा के विकास के लिए प्राथमिक एवं व्यावहारिक दोनों ही प्रकार के पाठ्यक्रमों की आवश्यकता होती है। प्राथमिक पाठ्यक्रम बालकों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए प्रस्तुत किया जाता है।

जबकि व्यावहारिक पाठ्यक्रम उनकी आदत के अनुसार निश्चित किया जाता है। बुद्धि परीक्षणों द्वारा प्रत्येक छात्र की सही उन्नति के मार्ग को प्रशस्त किया जाता है।

छात्र वर्गीकरण

ज्ञान प्राप्त करने की शक्ति छात्रों की मानसिकता पर निर्भर करती है इसके फलस्वरूप, एक हो कक्षा-शिक्षण का निष्पादन भिन्न-भिन्न होता है।

हान अर्जन बालको की बुद्धि क्षमता पर सीधा प्रभाव डालता है। अत: छात्र वर्गीकरण (Students’ Classification) में बुद्धि परीक्षाएँ उपयोगी होती है। वर्तमान भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक कक्षा में सामान्य, सामान्य से उच्च एवं सामान्य से नीचे आदि स्तरों के छात्र-छात्राएँ अध्ययनरत रहते है। प्रश्न उठता है कि क्या सभी बच्चों का शैक्षिक विकास उत्तम हो सकेगा? ऐसी परिस्थिति में, बुद्धि-परीक्षण के माध्यम से शिक्षक सामान्य, सामान्य से भिन्न एवं उच्च आदि छात्रों का वर्गीकरण करके उपयुक्त शिक्षण का प्रबन्ध करेगा ताकि सभी स्तरों के छात्र-छात्राएँ पाठ्यक्रम को धारण करके उत्सम निष्पादन प्रस्तुत कर सके।

  • इस प्रकार बुद्धि-परीक्षण से अध्यापकीय, छात्र एवं पाठ्यक्रम सम्बन्धी सभी समस्याएँ आसानी से समाप्त हो जाती है।

लैंगिक-भिन्नता में उपयोगी

शोध कार्यों से स्पष्ट हुआ है कि लड़के एवं लड़कियों में बुद्धि के आधार पर ही कार्यकुशलताओं में अन्तर पाया जाता है। इनके शारीरिक एवं मानसिक विकास का क्रम भिन्न होता है। अतः ज्ञान अर्जन की क्षमताओं में भी भिन्नता पाई जाती है।

स्पीयरमैन के अनुसार, दोनों में सामान्य एवं विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती है

और इनका निर्धारण बुद्धि-परीक्षणों के आधार पर ही सम्भव है। अतः सामाजिक व्यवस्था को सामान्य बनाए रखने के लिए यौन-भिन्नता के आधार पर विभिन्न अन्तरों की पहचान कर उनके बोय समायोजन स्थापित करने के लिए बुद्धि-परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है।

स्वयं का ज्ञान

शिक्षा का प्रयत्न बच्चों का सामान्य विकास करना होता है। बुद्धि परीक्षण के जरिए बच्चे अपने भीतर की क्षमताओं एवं शक्तियों को पहचानकर अपनी आकांक्षाओं (Goals) को पूर्ति आसानी से कर सकते है।

बुद्धि परीक्षाएँ बालकों के व्यक्तित्व के स्वरूप को स्पष्ट करती है। यह अपने भीतर विघटित तत्वों को निकाल देता है और अविघटित तत्त्वों को विकसित करता है।

अधिगम प्रणाली में उपयोगी

सीखने की प्रक्रिया बुद्धि पर निर्भर करती है। छात्र की लगन, अभ्यास प्रक्रिया, गलतियों का धारणा एवं प्रोत्साहन में वृद्धि एवं स्थानान्तरण आदि में बुद्धि का प्रभाव सर्वाधिक होता है।

  • बुद्धि परीक्षणों ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रतिभाशाली बच्चे कम समय में अधिक अधिगम एवं जान अर्जित करने में सक्षम होते हैं।

व्यावसायिक मार्गदर्शन

व्यवसाय में मनोविज्ञान ने पर्दापण करके विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला है। विभिन्न व्यवस्थाओं के लिए भिन्न प्रकार के मानसिक स्तर के व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।

• उपयुक्त मानसिक स्तर का व्यक्ति अपने व्यवसायों को विकासशील बनानेमें सहायक होता है।

जब हम गालत व्यवसाय का चयन कर लेते हैं तो हमारी अभिरुचि एवं कार्यक्षमता का हास होने लगता है, फलस्वरूप व्यवसाय और व्यक्ति दोनोंका विकास अवरुद्ध हो जाता है।

इस तरह व्यावसायिक मार्गदर्शन (Business Guideline) में भी बुद्धिपरीक्षण की भूमिका अहम होती है।

अनुसन्धान

शिक्षा के क्षेत्र में विकास अनुसन्धानों के ऊपर निर्भर करता है। कक्षा के भीतर की समस्याएँ और सामान्य समस्याओं के समाधान के लिए अनुसन्धान का सहारा लेना पड़ता है।

  • प्रत्येक अनुसन्धान (Research) के लिए बुद्धि परीक्षण आवश्यक होता है। विभिन्न घटकों का चयन करना होता है, तो बुद्धि भी एक आधार होता है ताकि कम-से-कम पुटि हो।

छात्र चयन में उपयोगी

विद्यालय में प्रवेश करने के बाद बालक के विकास का उत्तरदायित्व विद्यालय का होता है। विद्यालय-प्रशासन एवं प्रबन्धन बुद्धि-परीक्षणों का प्रयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में छात्र चयन हेतु करता है 1

1 . प्रवेश (Entry) किसी भी कार्य के लिए छात्र को अनुमति देने से पहले से उसको शारीरिक एवं मानसिक परिपक्वता का पता लगाना आवश्यक होता है। बुद्धि परीक्षण की सहायता इस कार्य में ली जाती है

  1. छात्रवृत्ति (Scholarship) शिक्षा के क्षेत्र में गरीबों और पिछड़े वर्गों के छात्रों का समुचित विकास करना प्रशासन का परम उ‌द्देश्य रहा है। इसके लिए छात्रवृत्ति, निर्धन पुस्तक सहायता योजना और पिछड़े वर्ग को व्यक्तिगत शिक्षण योजनाएँ वर्तमान सरकार द्वारा चलाई जा रही है। इनमे छात्रवृत्ति का प्रारूप बुद्धि-लब्धि के आधार पर तैयार किया जाता है।
  2. विशिष्ट योग्यताएँ (Specific Ability) प्रौद्योगीकरण के विकास ने योग्यता के क्षेत्र को अत्यन्त विशाल बना दिया है। आज प्रत्येक क्षेत्र में नवोन प्रतिभाओं की खोज हो रही है। प्रतिभा खोज (Talent Search) का प्रमुख आधार बुद्धि परीक्षाओं को ही माना जाता है।

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